किसान परेशान, कांग्रेस मैदान में… बीजेपी ‘खोखली नेतागिरी’ में मशगूल!
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किसानों की हालत देखकर आज एक कड़वा सच सामने आ गया है—
छत्तीसगढ़ में किसानों को ऑनलाइन टोकन के नाम पर इतनी भारी अव्यवस्था झेलनी पड़ रही है कि कांग्रेस को मैदान में उतरकर शासकीय दफ़्तरों को जगाना पड़ रहा है।
और मज़े की बात देखिए…
जो लोग खुद को बीजेपी का बड़ा नेता कहलवाने में दिन-रात लगे रहते हैं, वही लोग किसानों की असली समस्या पर एक शब्द बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे।

किसानों की पीड़ा नहीं दिखती, लेकिन फोटो खिंचवाने और भाषण देने में आगे!
आज किसान भाई धान कटवा चुके हैं, टोकन नहीं मिल रहा, रोज सोसायटी के चक्कर लगा रहे हैं—
लेकिन बीजेपी के वे तथाकथित नेता, जिन्हें किसानों की सबसे ज्यादा चिंता करनी चाहिए थी,
या तो गायब हैं… या फिर मोबाइल में फेसबुक-व्हाट्सऐप वाला नेता बनने में व्यस्त हैं।
कांग्रेस किसानों के साथ खड़ी होकर
👉 ऑफलाइन टोकन जारी करने,
👉 प्रतिदिन खरीदी की लिमिट बढ़ाने,
👉 और अव्यवस्था दूर करने
के लिए तहसीलदार के पास ज्ञापन दे रही है।
पर बीजेपी वालों से इतना भी नहीं हुआ कि किसान भाइयों की तकलीफ़ सुनने पहुंच जाएँ।
किसानों की आवाज़ दबा नहीं सकते!
बीजेपी के कुछ कार्यकर्ता अपनी तीखी ज़बान दिखाते फिरते हैं—
अरे भाई, किसानों की आँखों में जो दर्द है, वह तुम्हारे खोखले भाषण से नहीं भरेगा।
जो लोग किसानों की समस्या पर चुप हैं, वे नेता नहीं…
कुर्सी के भूखे दर्शक मात्र हैं।
अगर हिम्मत है तो किसानों के बीच उतरकर दिखाओ…
कांग्रेस की तरह मैदान में उतरकर समस्या का समाधान करवाओ,
न कि सोशल मीडिया पर नेता बनने का ढोंग करते रहो।
किसान परेशान है—
टोकन का सिस्टम ठप है, खरीदी की सीमा कम है, सोसायटी में अफरा-तफरी है।
ऐसे में जो भी व्यक्ति किसानों की बात नहीं कर रहा,
वह किसानों का नहीं, अपनी राजनीति का साथी है।

निष्कर्ष — बीजेपी वालों के लिए सीधी बात बिना लाग-लपेट के
जो पार्टी किसान की पीड़ा नहीं समझती,
जो कार्यकर्ता समस्या पर चुप हैं,
जो नेता सिर्फ नाम के हैं—
वे किसानों के हित की लड़ाई क्या लड़ेंगे?
आज कांग्रेस किसानों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी है,
और बीजेपी के कई कार्यकर्ता अभी भी ‘मैं नेता… मैं नेता…’ की रट लगाए बैठे हैं।
नेतागिरी मैदान में उतरकर होती है,
किसानों के बीच खड़े होकर होती है —
मोबाइल की स्टोरी लगाने से नहीं। 🔥
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