July 4, 2025

हत्या, जेल और झोपड़ी… बर्बादी के बीच उम्मीद बनकर खड़ी है ‘नानी फगनी बाई’

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चार मासूम, टूटा परिवार और बुजुर्ग कंधों पर जिंदगी की पूरी जिम्मेदारी

जिला संवाददाता-ओंकार शर्मा

गरियाबंद, छत्तीसगढ़ |जिला मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूर ग्राम पंचायत बारुका के कमार पारा में एक झोपड़ी है — मिट्टी की दीवारें, टपकती छत और अंदर छुपा एक पूरा संसार, जो मौत, जेल और तंगहाली से लड़ रहा है। यहां रहने वाली फगनी बाई कमार, उम्र 60 से पार, आज चार मासूम बच्चों के लिए ‘दादी नहीं, फरिश्ता’ बन गई हैं।

इन बच्चों की मां की हत्या हो चुकी है, और पिता हत्या के आरोप में सलाखों के पीछे हैं। गांव की विशेष पिछड़ी जनजाति से ताल्लुक रखने वाली करीना कमार, जो कि अभी आठवीं कक्षा में पढ़ती है, अपने तीन छोटे भाई-बहनों के साथ नानी की गोद में पल रही है। नानी भी कोई अमीर नहीं, बल्कि झोपड़ीनुमा घर में रहने वाली, वृद्ध और बेहद गरीब महिला हैं — लेकिन दिल और हिम्मत किसी राजा से कम नहीं।


नानी फगनी बाई: उम्र 60+, हौसला 100%

फगनी बाई कहती हैं:

“भगवान ने शायद मेरे बुढ़ापे में यही काम लिखा था… जब तक जान है, इन बच्चों को संभालती रहूंगी।”

बिना किसी स्थायी आय के, फगनी बाई इन बच्चों को स्कूल भेजती हैं, खाना जुटाती हैं, और प्यार से बड़ा कर रही हैं। उनका खुद का प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत मंजूर घर अभी अधूरा है, जो बारिश के कारण ठप पड़ा है। ऐसे में पूरी जिम्मेदारी उनके बूढ़े कंधों पर है।


प्रशासन सुन रहा है क्या?

सरकार द्वारा विशेष पिछड़ी जनजातियों (PVTG) जैसे कमार जनजाति के लिए तमाम योजनाएं हैं — छात्रवृत्ति, आवास, पोषण, शिक्षा सहायता — लेकिन जानकारी और जागरूकता के अभाव में ये योजनाएं इन जैसे जरूरतमंदों तक नहीं पहुंच पा रहीं।

जरूरत है कि जिला प्रशासन इन बच्चों को चिन्हांकित करे, फगनी बाई को विशेष पेंशन/आवास/पालन-पोषण भत्ता दे, और बच्चों की शिक्षा व भविष्य की जिम्मेदारी उठाए।


गांव में नानी नहीं, फरिश्ता रहती है

गांव के लोग उन्हें “फरिश्ता” कहते हैं। कारण साफ है —
जहां आज कई लोग अपने खुद के बच्चों से पल्ला झाड़ लेते हैं, वहां फगनी बाई जैसे लोग बिना किसी स्वार्थ के चार अनाथ बच्चों को बचा रहे हैं। यह सिर्फ संघर्ष नहीं, एक संघर्ष से जन्मी मिसाल है।


समाज और सिस्टम को चाहिए जागना

आज जरूरत इस बात की है कि सरकार, समाजसेवी संगठन, जनप्रतिनिधि और प्रशासन आगे आएं। ऐसे लोगों की पहचान कर उन्हें सपोर्ट सिस्टम से जोड़ा जाए, ताकि

बच्चों को पढ़ाई और सुरक्षा मिल सके,

फगनी बाई को सम्मान और सहारा मिले,

और यह कहानी सिर्फ दर्द की नहीं, विकास और बदलाव की कहानी बन जाए।


📍 ये सिर्फ खबर नहीं, एक सवाल है — क्या हम ऐसे लोगों के साथ खड़े हैं?

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