July 4, 2025

ईमानदार पत्रकार को बदनाम करने की साज़िश बेनकाब : पूर्व अपराधी और भ्रष्ट पटवारी के षड्यंत्र का पर्दाफाश…

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लैलूंगा, रायगढ़। क्षेत्र में अपनी निर्भीक और निष्पक्ष पत्रकारिता के लिए पहचाने जाने वाले वरिष्ठ पत्रकार चंद्रशेखर जायसवाल को बदनाम करने की एक गहरी साज़िश उजागर हुई है। विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार, कुछ असामाजिक तत्वों ने लैलूंगा थाना में एक झूठा, आधारहीन और अपमानजनक आवेदन देकर उन्हें मानसिक रूप से प्रताड़ित करने का प्रयास किया है।

उक्त आवेदन में न केवल जायसवाल के खिलाफ बेबुनियाद आरोप लगाए गए हैं, बल्कि अशोभनीय भाषा का प्रयोग कर उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा को ठेस पहुँचाने की कोशिश की गई है। यह स्पष्ट रूप से एक सुनियोजित षड्यंत्र है, जो उन तत्वों द्वारा रचा गया है जिनका खुद का अपराध और भ्रष्टाचार से गहरा नाता रहा है।

अपराधी और भ्रष्टाचारियों की मिलीभगत : इस षड्यंत्र में मुख्य भूमिका निभाने वाला व्यक्ति राजेश कुमार शर्मा, उर्फ “रेगड़ी वाला”, पूर्व में लूट और मारपीट जैसे संगीन अपराधों में जेल जा चुका है और फिलहाल जमानत पर बाहर है। ऐसे व्यक्ति की किसी भी शिकायत की विश्वसनीयता पहले से ही संदिग्ध है।

वहीं, पटवारी संजय भगत पर भी भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लंबे समय से लगे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि वह नियमित रूप से शराब सेवन करता है, और रिश्वत के बिना कोई कार्य नहीं करता। संजय भगत पर यह भी आरोप है कि वह दबंगई के बल पर लोगों को डराता-धमकाता है। ऐसे तत्व जब अपने काले कारनामों के उजागर होने से घबराते हैं, तो पत्रकारों को निशाना बनाना उनका पुराना हथकंडा होता है।

जनता और पत्रकारों का फूटा आक्रोश : स्थानीय नागरिकों और पत्रकार संगठनों ने इस नीच साज़िश की तीव्र निंदा की है। लोगों का कहना है कि चंद्रशेखर जायसवाल जैसे ईमानदार पत्रकार ही हैं, जिन्होंने लैलूंगा क्षेत्र में प्रशासनिक भ्रष्टाचार, अपराधियों के गठजोड़ और जनविरोधी गतिविधियों के खिलाफ साहसपूर्वक आवाज उठाई है।

जनता की मांग है कि लैलूंगा थाना इस फर्जी आवेदन की निष्पक्ष जांच करे और साज़िशकर्ताओं के खिलाफ कठोर कानूनी कार्रवाई की जाए। यदि प्रशासन इस मामले में मौन रहा, तो क्षेत्र में आंदोलन की चिंगारी भड़क सकती है।

लोकतंत्र पर सीधा हमला : यह मामला केवल एक पत्रकार की छवि धूमिल करने का नहीं, बल्कि लोकतंत्र की नींव – अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सीधा हमला है। प्रशासन की संवैधानिक जिम्मेदारी है कि वह सत्य के साथ खड़ा हो, और भ्रष्ट व आपराधिक मानसिकता वालों को संरक्षण देना बंद करे।

यदि अब भी ऐसे हमलों को नजरअंदाज किया गया, तो यह न केवल पत्रकारिता बल्कि जन सरोकारों की आवाज को भी दबाने का प्रयास माना जाएगा। ऐसे में जनता और पत्रकार समाज चुप नहीं बैठेगा।

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