December 13, 2025

गोबरसिंहा ग्राम पंचायत में अवैध कब्जा मामला: शिकायतकर्ता पत्रकार को धमकी, तहसीलदार के आदेश के बाद बढ़ा विवाद

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Jila sarangarh bilagarh /बरमकेला ब्लॉक के ग्राम पंचायत गोबरसिंहा में शासकीय भूमि पर अवैध कब्जे और निर्माण का मामला तूल पकड़ता जा रहा है। शिकायतकर्ता अजय साहू, जो कि स्वतंत्र पत्रकार भी हैं, ने इस मामले को लेकर तहसील कार्यालय में लिखित शिकायत दर्ज कराई थी। इस पर आज दिनांक 17 सितंबर 2025 को तहसीलदार ने मौके पर पहुंचकर जांच की और स्पष्ट निर्देश दिए कि 2-3 दिनों के भीतर शासकीय भूमि को खाली किया जाए। तहसीलदार के इस निर्देश से ग्रामीणों में उम्मीद जगी थी कि अब अवैध कब्जा हटेगा, लेकिन इसी बीच हालात बिगड़ गए।

तहसीलदार के जाते ही धमकी और अभद्र व्यवहार

सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, जैसे ही तहसीलदार सर का काफिला मौके से लौटा, उसी समय ग्राम के निवासी लक्ष्मीनारायण पटेल ने माहौल को तनावपूर्ण बना दिया। उसने न केवल शिकायतकर्ता अजय साहू के साथ अभद्र भाषा का प्रयोग किया, बल्कि उन्हें जान से मारने की धमकी भी दी। गवाहों के मुताबिक, लक्ष्मीनारायण पटेल जोर-जोर से चिल्लाता रहा और अजय साहू को डराने-धमकाने की कोशिश करता रहा।

यह घटना केवल व्यक्तिगत विवाद नहीं है, बल्कि लोकतांत्रिक व्यवस्था और पत्रकारिता की स्वतंत्रता पर भी सीधा हमला है। एक ओर जहां शासकीय भूमि पर अवैध कब्जा करना कानूनन अपराध है, वहीं दूसरी ओर, उस अपराध को उजागर करने वाले पत्रकार को धमकाना प्रशासनिक व्यवस्था को चुनौती देना है।

अवैध कब्जे की हकीकत

स्थानीय लोगों के अनुसार, लक्ष्मीनारायण पटेल ने शासकीय भूमि पर गोदाम और शासकीय दुग्ध सहकारी समिति का निर्माण कर रखा है। यह जमीन सार्वजनिक उपयोग के लिए आरक्षित थी, लेकिन उस पर व्यक्तिगत हित साधते हुए निर्माण किया गया है। इस कब्जे से न केवल सरकारी नियमों का उल्लंघन हुआ है, बल्कि ग्राम पंचायत के विकास और ग्रामीणों की सुविधाओं पर भी असर पड़ा है।

शासकीय भूमि का दुरुपयोग करना गंभीर अपराध की श्रेणी में आता है। बावजूद इसके, लंबे समय से इस पर कोई कार्रवाई नहीं हो पाई थी। शिकायत दर्ज होने और तहसीलदार द्वारा कार्रवाई की चेतावनी के बाद ही प्रशासनिक स्तर पर हलचल देखने को मिली है।

पत्रकारों पर बढ़ते खतरे की झलक

इस घटना ने एक और बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है—क्या आज भी पत्रकार सुरक्षित हैं? ग्रामीण पत्रकार अजय साहू का मामला इस बात को रेखांकित करता है कि भ्रष्टाचार, अवैध कब्जा और गैरकानूनी गतिविधियों को उजागर करने वालों को किस तरह से दबाने की कोशिश की जाती है। धमकी देना, अभद्र भाषा का उपयोग करना और जान से मारने तक की बात कहना इस बात का प्रमाण है कि अपराधी किस हद तक बेखौफ हैं।

पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है। यदि पत्रकार ही असुरक्षित रहेंगे तो जनहित से जुड़े मुद्दे कौन उठाएगा? यह केवल अजय साहू का मुद्दा नहीं है, बल्कि पूरे मीडिया जगत के लिए चिंता का विषय है।

प्रशासन की जिम्मेदारी और चुनौतियाँ

अब सवाल यह उठता है कि तहसीलदार के आदेश के बाद भी यदि शासकीय भूमि खाली नहीं कराई गई और शिकायतकर्ता को धमकी दी गई, तो क्या प्रशासन इस मामले को गंभीरता से लेगा? स्थानीय प्रशासन पर यह जिम्मेदारी है कि अवैध कब्जे को तत्काल हटाए और धमकी देने वालों पर कानूनी कार्रवाई करे।

पंचायत स्तर पर होने वाले अवैध कब्जे अक्सर वर्षों तक अनदेखे रह जाते हैं, लेकिन जब इन्हें उजागर किया जाता है तो शिकायतकर्ता को ही परेशान किया जाता है। यह प्रवृत्ति लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए बेहद खतरनाक है। प्रशासन को न केवल अवैध कब्जे को हटाना चाहिए, बल्कि शिकायतकर्ता की सुरक्षा की भी गारंटी देनी चाहिए।

ग्रामीणों की राय और उम्मीदें

ग्रामवासियों का कहना है कि शासकीय भूमि आमजन की संपत्ति है, जिस पर किसी भी प्रकार का निजी कब्जा स्वीकार्य नहीं है। ग्रामीण चाहते हैं कि प्रशासन इस मामले में कड़ी कार्रवाई करे ताकि भविष्य में कोई भी व्यक्ति शासकीय भूमि पर कब्जा करने की हिम्मत न कर सके। साथ ही, ग्रामीणों का यह भी कहना है कि पत्रकार अजय साहू को धमकी देना बेहद निंदनीय है और इस पर कठोर कार्रवाई होनी चाहिए।

निष्कर्ष

गोबरसिंहा ग्राम पंचायत का यह मामला केवल अवैध कब्जे तक सीमित नहीं है, बल्कि यह व्यवस्था, कानून और पत्रकारिता की स्वतंत्रता से भी जुड़ा हुआ है। तहसीलदार द्वारा दिए गए आदेश प्रशासन की गंभीरता को तो दिखाते हैं, लेकिन अब असली परीक्षा यह होगी कि 2-3 दिनों के भीतर वास्तव में कब्जा हटता है या नहीं।

यदि प्रशासन सख्त कार्रवाई करता है तो यह एक सकारात्मक संदेश होगा कि कानून का राज कायम है और पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित है। लेकिन यदि ऐसा नहीं होता, तो यह न केवल ग्रामीणों की उम्मीदों पर पानी फेर देगा, बल्कि अवैध कब्जाधारियों के हौसले भी बुलंद हो जाएंगे।

इसलिए, इस घटना को हल्के में लेने के बजाय, इसे एक उदाहरण बनाकर प्रशासन को कड़ा कदम उठाना चाहिए। तभी गोबरसिंहा ही नहीं, बल्कि पूरे क्षेत्र में अवैध कब्जे की समस्या पर अंकुश लग सकेगा और पत्रकार सुरक्षित रह सकेंगे।

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