सहायक संचालक नूतन सिदार विवादों में, मुख्यमंत्री विष्णु देव साय के गृह ज़िले से उठी प्रेस की आज़ादी पर बड़ी बहससोशल मीडिया पर विवादित प्रकरण: क्या सहायक संचालक नूतन सिदार अपनी पद की गरिमा भूल रही हैं?
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रायपुर/रायगढ़/जशपुर । विशेष रिपोर्ट
मुख्यमंत्री विष्णु देव साय के गृह ज़िले से एक ऐसा मामला सामने आया है जिसने पूरे प्रदेश की पत्रकार बिरादरी को हिला दिया है। जनसम्पर्क विभाग की सहायक संचालक नूतन सिदार ने पत्रकार ऋषिकेश मिश्र पर मानहानि का आरोप लगाते हुए पुलिस अधीक्षक रायगढ़ से FIR, मोबाइल जब्ती और गिरफ्तारी की मांग की है।

जिला सम्पर्क कार्यालय जशपुर की सहायक संचालक नूतन सिदार एक बार फिर विवादों में घिर गई हैं। इस बार उन्होंने सोशल मीडिया पर फैल रही खबरों और मैसेजों को लेकर पुलिस अधीक्षक रायगढ़ को शिकायत दी है। उन्होंने आरोप लगाया है कि रायगढ़ जिले के एक ग्रामीण युवक ऋषिकेश मिश्र उनकी फोटो और संदेश वायरल कर बदनाम कर रहा है।
लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या हर आलोचना को दबाने के लिए प्रशासनिक पद पर बैठे अधिकारी सीधे पुलिस कार्रवाई और गिरफ्तारी की धमकी का सहारा लेंगे? लोकतांत्रिक समाज में पत्रकार और आमजन सवाल पूछेंगे ही, परंतु क्या इन सवालों का जवाब कार्रवाई से दिया जाएगा?
मुख्यमंत्री के विभाग पर सवाल
गौरतलब है कि नूतन सिदार जिस जनसम्पर्क विभाग से जुड़ी हैं, वही विभाग सीधे मुख्यमंत्री विष्णु देव साय के पास है। ऐसे में यह मामला केवल एक अफसर और एक पत्रकार तक सीमित नहीं रह गया, बल्कि यह अब सीधे मुख्यमंत्री की छवि और उनके शासन के रुख से जुड़ गया है।
👉 सवाल उठ रहा है कि क्या मुख्यमंत्री के गृह ज़िले में ही पत्रकारों की आवाज़ दबाई जाएगी?
👉 क्या मुख्यमंत्री का विभाग ही लोकतंत्र और प्रेस की स्वतंत्रता पर सवाल खड़ा करेगा?
आलोचना सहन क्यों नहीं?
नूतन सिदार की शिकायत से यह साफ झलकता है कि वह किसी भी तरह की आलोचना या टिप्पणी बर्दाश्त करने को तैयार नहीं हैं। पद पर रहते हुए यह उनकी ज़िम्मेदारी है कि वे पारदर्शिता और जवाबदेही से काम करें। मगर सोशल मीडिया पर सवाल उठने पर उसे “आईटी एक्ट का गंभीर अपराध” बताकर सीधे गिरफ्तार कराने की मांग क्या लोकतांत्रिक मूल्यों का गला नहीं घोंटती?
अधिकारी या दबाव बनाने वाली?
आवेदन में नूतन सिदार ने जिस तरह सख्ती से कार्रवाई की मांग की है, उससे यह संदेश जा रहा है कि वह अपने पद का इस्तेमाल करके जनता की आवाज़ दबाने और आलोचकों को डराने की कोशिश कर रही हैं। यह रवैया जनसम्पर्क विभाग के मूल उद्देश्य के ही विपरीत है। विभाग का काम जनता और शासन के बीच सेतु का बनना है, न कि आम लोगों के खिलाफ मुकदमे दर्ज कराना।
प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला
पत्रकार संगठनों ने इसे प्रेस की आज़ादी पर सीधा हमला बताते हुए कड़ी निंदा की है। उनका कहना है कि –
👉 “यदि हर पत्रकार को सच्चाई लिखने पर एफआईआर और गिरफ्तारी का डर दिखाया जाएगा, तो लोकतंत्र के चौथे स्तंभ का अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाएगा।”
अफसरशाही का नया रूप?
नूतन सिदार का आवेदन पढ़ने के बाद यह साफ झलकता है कि वह अपने पद का दुरुपयोग कर रही हैं। पत्रकारिता पर लगाम लगाने के लिए पुलिस का सहारा लेना न केवल अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन है, बल्कि जनता की आवाज़ दबाने की साजिश भी माना जा रहा है।
सवाल जनता के मन में
क्या वाकई सोशल मीडिया पर आलोचना अपराध है?
क्या अधिकारी अपनी छवि की आड़ में जनता की आवाज़ दबा सकते हैं?
क्या नूतन सिदार का यह कदम पद के दुरुपयोग की श्रेणी में नहीं आता?
क्या प्रशासनिक पद पर बैठे अफसर अपनी आलोचना सहन नहीं कर पा रहे?
क्या अब पत्रकारिता करना अपराध माना जाएगा?
संगठनों ने दी चेतावनी
स्थानीय पत्रकार संगठनों का कहना है कि यदि प्रशासन ने इस मामले में पक्षपातपूर्ण कार्रवाई की, तो इसका जोरदार विरोध किया जाएगा। पत्रकारों के खिलाफ इस तरह की साजिश लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को कमजोर करने वाली है।
विपक्ष को मिला मुद्दा
यह मामला जैसे ही सार्वजनिक हुआ, विपक्षी दलों और सामाजिक संगठनों ने इसे बड़ा मुद्दा बनाना शुरू कर दिया है। उनका कहना है कि मुख्यमंत्री के विभाग में बैठे अफसर पत्रकारों पर दमनात्मक कार्रवाई की कोशिश कर रहे हैं, जो विष्णु देव साय की “पारदर्शी शासन” की छवि को धूमिल करता है।
नतीजा
इस पूरे मामले ने नूतन सिदार की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। यदि अधिकारी हर सवाल उठाने वाले पर पुलिस केस दर्ज कराएंगे, तो फिर लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की आज़ादी का क्या होगा?
👉 अब देखना है कि पुलिस इस मामले को कैसे लेती है – जनता की आवाज़ का सम्मान करते हुए या फिर अधिकारी की दबंगई के दबाव में?
👉 यह मामला सिर्फ एक पत्रकार और अधिकारी का नहीं है, बल्कि यह तय करेगा कि छत्तीसगढ़ में पत्रकारिता स्वतंत्र रहेगी या अफसरशाही के दबाव में दम तोड़ देगी।