December 13, 2025

धान, बिजली और खाद के लिए किसानों का हुंकार! प्रशासन को चेतावनी – अब नहीं सहेगा किसान, हक के लिए सड़कों पर उतरेगा!

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कागज़ों में किसान “ऋणदाता”, हकीकत में किसान “कर्ज़दार”! KCC सिस्टम ने तोड़ी किसानों की कमर

पहले दो फसलों पर मिलता था KCC, अब एक बार वो भी लेट – रबी में किसान क्यों हो रहा बेहाल?

सारंगढ़-बिलाईगढ़।09/दिसंबर/2025=क्षेत्र का किसान आज त्राहि-त्राहि कर रहा है। धान खरीदी की लिमिट, कटे हुए रकबा,KCC रबी, खरीफ़,बिजली संकट और खेती के लिए जरूरी रासायनिक खाद की भारी किल्लत—इन तमाम समस्याओं को लेकर सरिया, लुकापारा और पचधारा क्षेत्र के किसानों का गुस्सा अब फूट पड़ा है। अंचलिक किसान संघ सरिया क्षेत्र के किसानों ने इन गंभीर समस्याओं को लेकर जिला प्रशासन को ज्ञापन सौंपते हुए स्पष्ट शब्दों में चेताया है कि अगर शीघ्र समाधान नहीं हुआ तो आने वाले दिनों में बड़ा आंदोलन किया जाएगा।

किसानों द्वारा सौंपे गए इस आवेदन में जो मांगें रखी गई हैं, वे केवल कागज़ी नहीं, बल्कि किसान की रोज़ी-रोटी, भविष्य और सम्मान से जुड़ी बुनियादी ज़रूरतें हैं। लेकिन अफसोस की बात यह है कि शासन-प्रशासन अब तक इन पर गंभीरता नहीं दिखा रहा।

धान खरीदी की लिमिट बनी किसानों के लिए फांसी का फंदा

आवेदन की पहली और सबसे अहम मांग है कि सेवा सहकारी समितियों में धान खरीदी की लिमिट बढ़ाई जाए।
आज हालत यह है कि किसान पूरी मेहनत से फसल उगाकर लाता है, लेकिन लिमिट के नाम पर उसका धान खरीदी केंद्र से वापस लौटा दिया जाता है। मजबूर होकर किसान औने-पौने दामों में अपना धान दलालों को बेच रहा है।
सरकार एक तरफ किसानों की आय दोगुनी करने की बात करती है और दूसरी तरफ उनकी उपज खरीदने तक को तैयार नहीं—यह खुला छलावा नहीं तो और क्या है?

जिन किसानों का रकबा काटा गया, उन्हें तुरंत जोड़ा जाए

दूसरी अहम मांग यह है कि जिन किसानों का रकबा काट दिया गया है, उन्हें तत्काल जोड़ा जाए।
कई किसान ऐसे हैं जो सालों से खेती करते चले आ रहे हैं, लेकिन तकनीकी गड़बड़ियों, मनमानी या लापरवाही के कारण आज वे सरकारी रजिस्टर से बाहर कर दिए गए हैं।
न रकबा, न धान बेचने का अधिकार, न कोई सरकारी सहायता—ये किसान आखिर जाएं तो जाएं कहां?
किसान संघ ने साफ कहा है कि यह अन्याय अब बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

सरिया क्षेत्र को 132 केवी सब स्टेशन की सख्त जरूरत

किसानों की तीसरी बड़ी मांग है कि सरिया क्षेत्र में 132 केवी विद्युत सब स्टेशन की स्थापना शीघ्र की जाए।
आज हालात यह हैं कि खेतों तक सिंचाई के लिए बिजली नहीं मिलती। कभी वोल्टेज कम, कभी घंटों कटौती, कभी ट्रांसफॉर्मर जले हुए—इन हालात में किसान खेती करे तो कैसे करे?
बिजली नहीं तो सिंचाई नहीं, सिंचाई नहीं तो फसल नहीं और फसल नहीं तो किसान का जीवन ही अंधकारमय।
इसके बावजूद सरकार और बिजली विभाग चैन की नींद सो रहा है।

खाद, डीएपी, यूरिया और कृषि ऋण की भारी किल्लत

आवेदन की चौथी और बेहद गंभीर मांग है कि सेवा सहकारी समितियों में रबी फसल हेतु रासायनिक खाद, डीएपी, यूरिया और कृषि ऋण की समुचित व्यवस्था की जाए।
आज किसान लाइन में घंटों खड़ा रहता है, लेकिन खाद नहीं मिलती। कई जगह सिर्फ आश्वासन मिल रहा है, खाद नहीं।
बगैर खाद और ऋण के किसान कैसे रबी की फसल बोए?
यह स्थिति बताती है कि सरकार का पूरा मैनेजमेंट सिस्टम किसानों के खिलाफ खड़ा नजर आ रहा है।

किसान बोले – हमें मजबूर मत करो आंदोलन के लिए

किसान संघ से जुड़े नेताओं और ग्रामीण किसानों ने दो टूक चेतावनी दी है कि

“अगर हमारी मांगों को शीघ्र पूरा नहीं किया गया तो हम तहसील से लेकर जिला मुख्यालय तक उग्र आंदोलन करने को मजबूर होंगे। इसकी पूरी जिम्मेदारी शासन-प्रशासन की होगी।”

किसानों का कहना है कि वे बार-बार शांतिपूर्ण ज्ञापन सौंपते हैं, लेकिन उनकी बातों को हर बार नजरअंदाज कर दिया जाता है। अब किसान चुप नहीं रहेगा।

प्रशासन के लिए यह आखिरी चेतावनी?

इस ज्ञापन के जरिए किसानों ने यह साफ कर दिया है कि
धान खरीदी, विद्युत सुविधा, खाद वितरण और ऋण व्यवस्था अब कोई मांग नहीं बल्कि उनका संवैधानिक अधिकार है।
अगर प्रशासन ने अब भी आंख मूंदी रखी तो हालात विस्फोटक हो सकते हैं।

आज सरिया क्षेत्र का किसान अपने हक के लिए सड़क पर उतरने को तैयार है।
धान खरीदी की लिमिट हो या कटे हुए रकबे, बिजली हो या खाद की कमी—हर मोर्चे पर किसान ठगा हुआ महसूस कर रहा है।
अब देखना यह है कि प्रशासन समय रहते चेतता है या फिर आने वाले दिनों में किसानों का बड़ा विस्फोट पूरे इलाके को हिला देगा।

किसान अब भीख नहीं, अधिकार मांग रहा है… और अधिकार लेकर ही मानेगा!

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देश का अन्नदाता आज हर तरफ से परेशान है। कभी खाद के लिए लाइन, कभी बीज के लिए मारामारी, कभी धान खरीदी में टोकन की टेंशन और अब सबसे बड़ी मार – किसान क्रेडिट कार्ड (KCC) की अनियमितता। एक समय था जब किसान को खरीफ और रबी – दोनों फसलों के लिए अलग-अलग समय पर KCC से मदद मिलती थी, लेकिन अब हालात इतने बदतर हो चुके हैं कि साल में सिर्फ एक बार भी समय पर KCC नहीं मिल पा रहा।

🌾 पहले व्यवस्था थी, अब सिर्फ खानापूर्ति!

पहले किसानों को:

खरीफ फसल (धान) के लिए KCC

उसके बाद रबी फसल (चना, गेहूं, सरसों) के लिए दोबारा सुविधा

मिलती थी। इससे किसान:

बीज खरीदता था

खाद-कीटनाशक लाता था

मजदूरी देता था

और समय पर खेती कर पाता था

लेकिन अब बैंक, प्रशासन और सरकार की लापरवाही का नतीजा यह है कि किसान को सिर्फ खरीफ में वो भी देर से KCC मिलता है।

💸 धान बेचते ही KCC का पैसा काट लिया जाता है

खरीफ में जब किसान धान बेचता है, तो:

सरकार समर्थन मूल्य देती है

उसी पैसे में से पहले KCC की पूरी किश्त काट ली जाती है

😞 रबी फसल में सबसे ज़्यादा मार

रबी की खेती के समय:

खेत तैयार करना

बीज खरीदना

खाद डालना

सिंचाई

मजदूरी

इन सबके लिए तुरंत पैसों की जरूरत होती है। लेकिन:

जब तक पैसा आता है, तब तक बोनी का समय निकल चुका होता है

किसान मजबूरी में साहूकार से ऊँचे ब्याज पर कर्ज़ लेता है

या फिर खेती आधी-अधूरी करता है

और फिर साल भर कर्ज़ के दलदल में फंसा रहता है

इसका कोई साफ जवाब किसी के पास नहीं है।

सरकार की योजनाएँ सिर्फ पोस्टर और भाषण तक सीमित

सरकार हर मंच से कहती है:

किसान हमारी प्राथमिकता है

KCC से किसान मजबूत होगा

आत्मनिर्भर भारत बनेगा

लेकिन हकीकत यह है कि:

किसान आज भी बीज के लिए उधार मांग रहा है

खाद दुकानदार से किस्तों में ले रहा है

और ब्याज पर ब्याज चढ़ता जा रहा है

पोस्टर में किसान मुस्कुराता है,
ज़मीन पर किसान रोता है!

⚠️ आने वाले समय में बढ़ेगा संकट

अगर यही हाल रहा तो:

रबी की पैदावार घटेगी

किसान और कर्ज़ में डूबेगा

खेती से मोहभंग बढ़ेगा

युवा शहरों की ओर पलायन करेगा
जो देश को खाद्य संकट की ओर ले जा सकता है।

✊ किसानों की मुख्य माँगें

किसानों की प्रमुख माँगें साफ हैं:

खरीफ और रबी दोनों फसलों के लिए समय पर अलग-अलग KCC मिले

रबी के लिए न्यूनतम राशि तुरंत उपलब्ध कराई जाए
बैंकों की मनमानी पर सख्त कार्रवाई हो

ऑनलाइन सिस्टम की खामियाँ तुरंत दूर की जाएँ
🔚 अब सवाल यह है…

देश का अन्नदाता सवाल पूछ रहा है:

जब किसान के पास समय पर KCC नहीं,
समय पर खाद नहीं,
और समय पर पैसा नहीं…
तो वो खेती कैसे करे?

सरकार अगर सच में किसानों की हितैषी है,
तो KCC को चुनावी जुमला नहीं, ज़मीनी सहारा बनाना होगा।
वरना आने वाला वक्त सिर्फ किसान का नहीं, देश की खेती का भी सबसे बड़ा संकट होगा!

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