September 8, 2025

किसानों के हिस्से का खाद ग़ायब, काला बाज़ारी में मुनाफाखोरी चरम पर

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बीजेपी सरकार के “पर्याप्त भंडार” के दावे ध्वस्त, किसान डेढ़ से दोगुना दाम पर खाद खरीदने को मजबूर — प्रशासन मूकदर्शक

बरमकेला। छत्तीसगढ़ में किसानों के हितैषी होने का ढोंग रचने वाली बीजेपी सरकार के “सुशासन” के दावों की हकीकत एक बार फिर बेनकाब हो रही है। प्रदेश में पर्याप्त मात्रा में खाद उपलब्ध होने के सरकारी दावों के विपरीत, हकीकत यह है कि कई मंडियों में खाद का घोर अभाव है। भूमिपुत्र किसान अपने हिस्से की खाद पाने के लिए रोज़ सरकारी केंद्रों के चक्कर काट रहे हैं, लेकिन उन्हें मायूस होकर लौटना पड़ रहा है। मजबूरी में ये किसान खुले बाजार से डेढ़ से दोगुना कीमत चुकाकर खाद खरीदने को विवश हैं। यह स्थिति किसानों की पीठ पर दोहरी मार के समान है — एक तरफ फसल उत्पादन की चिंता, दूसरी तरफ सरकारी लापरवाही का शिकंजा।

सुदूर ग्रामीण अंचल के धान उपार्जन केंद्र दुलोपाली, उपमंडी सेवा सहकारी समिति मर्यादित पंजीयन क्रमांक 1550, काला खूंटा में हालात बेहद गंभीर हैं। यहां अधिकांश किसानों को पंजीकृत रकबे के हिसाब से खाद का पूरा हिस्सा नहीं मिल पा रहा। कई किसानों को यूरिया पूरी मात्रा में नहीं दिया गया, तो कई D.A.P. के इंतज़ार में मंडी आते हैं और निराश होकर लौट जाते हैं। केंद्र के ऑपरेटर के मुताबिक मात्र 55-60 किसानों का वितरण होना बताया जा रहा है, जबकि हकीकत में यह संख्या सैकड़ों में है। यह आंकड़े सरकारी तंत्र की पारदर्शिता पर सवाल खड़े करते हैं।

सबसे बड़ा सवाल यह है कि अगर वास्तव में खाद की कमी है, तो फिर काला बाज़ारी में वही खाद इतनी आसानी से कैसे उपलब्ध है? सरकारी केंद्र पर यूरिया 266 रुपये बोरी, D.A.P. 1350 रुपये और पोटाश 1500 रुपये में मिलना तय है, लेकिन काला बाज़ारी में इन्हीं खादों के दाम क्रमशः 550 रुपये, 1850 रुपये और 1900 रुपये तक वसूले जा रहे हैं। आखिर यह गोरखधंधा बिना प्रशासन की नाक के नीचे कैसे फल-फूल रहा है?

किसान सवाल पूछ रहे हैं कि क्या यह सरकार किसानों के विकास के लिए है या फिर बिचौलियों और कालाबाजारियों के मुनाफे के लिए? खाद की इस लूट ने साफ कर दिया है कि किसानों के नाम पर बड़े-बड़े मंचों से भाषण देने वाली सत्ता, जमीनी हकीकत में उनकी परेशानी की जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं है। अगर यह हाल बरसात और बुवाई के समय है, तो आने वाले दिनों में किसानों की मुश्किलें और भी बढ़ने वाली हैं।

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