“मलेवा की पहाड़ियों में बसी भुंजिया जनजाति की अनसुनी पुकार: न सड़क, न स्कूल, न बिजली – विकास से कोसों दूर जिंदगी”
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जिला संवाददाता-ओंकार शर्मा

स्थान – मालेवा, छुरा, गरियाबंद, छत्तीसगढ़
छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले के अंतिम छोर पर बसे मलेवा क्षेत्र की पहाड़ियों में विशेष पिछड़ी भुंजिया जनजाति आज भी विकास की मुख्यधारा से कोसों दूर जिंदगी जीने को मजबूर है। न सड़क, न स्कूल और न बिजली – मूलभूत सुविधाओं के अभाव में यहां के लोग 21वीं सदी में भी सदियों पुरानी जीवनशैली को ढो रहे हैं।

ग्राम थुहापानी, जो कि भुंजिया जनजातीय समुदाय का एक छोटा सा गांव है, यहां 25 से 30 परिवार रहते हैं। इनका जीवन पूरी तरह कृषि और वनोपज संग्रहण पर निर्भर है। ये लोग अपनी सांस्कृतिक परंपराओं और प्रकृति के साथ एक आत्मीय रिश्ता रखते हुए सादगीपूर्ण जीवन जीते हैं।
हालांकि सरकार की योजनाओं और आदिवासी कल्याण के दावों के बीच, इन गांवों की वास्तविक स्थिति इन वादों को खोखला साबित करती है। बरसात में कच्ची पगडंडियां कीचड़ में बदल जाती हैं और नदी-नाले उफान पर आ जाते हैं। गांव से बाहर निकलना लगभग असंभव हो जाता है। पुल-पुलियों का अभाव ग्रामीणों को हमेशा जोखिम में डालता है।

शिक्षा और स्वास्थ्य की भारी किल्लत
गांव में कोई प्राथमिक स्कूल नहीं है। बच्चों को 15 किलोमीटर दूर दूसरे गांवों में रहकर पढ़ाई करनी पड़ती है। न तो हॉस्टल की व्यवस्था है और न ही परिवहन की सुविधा। स्वास्थ्य सेवाएं भी नाम मात्र की हैं। ज़रा सी तबियत बिगड़ने पर इलाज के लिए ग्रामीणों को कई किलोमीटर पैदल सफर करना पड़ता है।
बिजली की उम्मीद भी धुंधली
गांव में अब तक बिजली नहीं पहुंची है। न कोई खंभा, न तार। कुछ घरों में सोलर पैनल लगे हैं जिनसे रात के अंधेरे में थोड़ी राहत मिलती है, लेकिन पर्याप्त नहीं।
सरकारी दुकानें भी दूर
राशन की सरकारी दुकानें गांव से 15 किलोमीटर दूर हैं। नदी-नाले पार कर ग्रामीण चावल और आवश्यक सामग्री लाने जाते हैं। अत्यधिक बारिश होने पर यह भी संभव नहीं हो पाता।
नेताओं से भी दूरी
ग्रामीणों का कहना है कि आज तक उनके गांव में कोई सांसद या विधायक नहीं पहुंचा। चुनावों के वक्त वादों की झड़ी जरूर लगती है, लेकिन उसके बाद कोई सुध नहीं लेता।

नक्सलवाद बना बड़ा रोड़ा
इन गांवों का विकास न हो पाने का एक प्रमुख कारण यह भी रहा कि मलेवा क्षेत्र को पहले नक्सल प्रभावित माना जाता था। हालांकि अब स्थिति बदली है, सुरक्षा बलों के प्रयासों से नक्सली गतिविधियां घट गई हैं और धीरे-धीरे विकास कार्य भी शुरू हुए हैं। कुछ स्थानों पर सड़क निर्माण की प्रक्रिया प्रारंभ हो चुकी है।
जरूरत है ठोस पहल की
गांववालों की प्रमुख मांग है – बिजली, प्राथमिक शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा की जल्द उपलब्धता। प्रशासन को चाहिए कि विशेष पिछड़ी जनजातियों की समस्याओं को प्राथमिकता में रखते हुए त्वरित समाधान करे और उनके जीवन को भी समान विकास का अधिकार मिले।
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