बिलासपुर में पत्रकारिता की आड़ में भयादोहन: तीन कथित पत्रकारों पर FIR दर्ज
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पार्षद से मांगे ₹50,000, धमकी दी — नहीं देने पर ‘ख़बर वायरल’ करने का दावा
बिलासपुर, 23 जून 2025 | विशेष संवाददाता
छत्तीसगढ़ के बिलासपुर ज़िले से पत्रकारिता की गरिमा को ठेस पहुँचाने वाला एक गंभीर मामला सामने आया है। सिविल लाइन थाना क्षेत्र में तीन कथित पत्रकारों द्वारा वार्ड क्रमांक 19 के पार्षद से ₹50,000 की जबरन मांग कर ब्लैकमेलिंग करने का मामला प्रकाश में आया है। शिकायत के आधार पर पुलिस ने तीनों आरोपियों के खिलाफ FIR दर्ज कर ली है।




पार्षद के कार्यालय में घुसकर धमकी दी
पीड़ित पार्षद भरत कश्यप ने सिविल लाइन थाना में दर्ज कराई गई अपनी शिकायत में बताया कि तीन व्यक्ति —
नीरज शुक्ला उर्फ अप्पू शुक्ला
संतोष मिश्रा
जिया उल्ला
— उनके कार्यालय में घुस आए और खुद को पत्रकार बताते हुए एक महिला के साथ अवैध संबंध का आरोप लगाते हुए उन्हें बदनाम करने की धमकी दी।
तीनों ने कहा कि उनके पास इस “कथित मामले” की वीडियो बाइट है और अगर ₹50,000 रुपये नहीं दिए गए तो वे यह खबर सोशल मीडिया पर वायरल कर देंगे। पार्षद ने इसे सीधा भयादोहन और पत्रकारिता की आड़ में वसूली बताया।
FIR दर्ज, IPC नहीं BNS की धाराओं में मामला
इस मामले में पुलिस ने भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 308(2) और 3(5) के तहत तीनों आरोपियों पर एफआईआर दर्ज की है।
थाना प्रभारी सुम्मत साहू ने मीडिया को बताया कि प्राथमिक जाँच के आधार पर तीनों के विरुद्ध आरोप गंभीर प्रतीत हो रहे हैं और आगे की कार्रवाई की जा रही है।
पुराना आपराधिक रिकॉर्ड भी उजागर
सूत्रों के अनुसार, नीरज शुक्ला उर्फ अप्पू शुक्ला का आपराधिक इतिहास पहले से ही संदिग्ध रहा है। उस पर पूर्व में अवैध जुएं का अड्डा चलाने, मारपीट और वसूली जैसे आरोप लग चुके हैं और कई थानों में एफआईआर दर्ज है।
इसी तरह जिया उल्ला पर धोखाधड़ी (IPC 420) का मामला पहले से दर्ज है, जिसमें वह जेल भी जा चुका है।
तीसरा आरोपी संतोष मिश्रा के संबंध में भी कुछ संदेहास्पद गतिविधियों की जानकारी पुलिस रिकॉर्ड में बताई जा रही है, हालाँकि उसकी आपराधिक पृष्ठभूमि की पुष्टि अभी जाँच में हो रही है।
पत्रकारिता के नाम पर गिरोहबाज़ी?
इस घटनाक्रम ने एक बार फिर पत्रकारिता की छवि को लेकर बहस छेड़ दी है। कुछ लोग पत्रकार होने का झूठा दावा कर ब्लैकमेलिंग, अवैध वसूली और दबाव की राजनीति कर रहे हैं। ऐसे मामलों में असली पत्रकारों की साख भी प्रभावित होती है।
वरिष्ठ पत्रकार विनोद गुप्ता ने कहा –
“पत्रकारिता एक पवित्र दायित्व है। अगर कोई इसका इस्तेमाल निजी हितों और अपराध के लिए करता है तो उसे पत्रकार नहीं, अपराधी कहा जाना चाहिए।”
समाज में रोष, कार्रवाई की मांग
स्थानीय नागरिकों और पार्षद समर्थकों ने घटना पर नाराज़गी जताते हुए आरोपियों की तत्काल गिरफ्तारी की मांग की है। वहीं, कुछ नागरिकों ने पत्रकारों के सत्यापन की ठोस प्रक्रिया और प्रेस कार्ड जारी करने की जवाबदेही तय करने की आवश्यकता पर बल दिया है।
पुलिस का रुख सख्त
सिविल लाइन थाना प्रभारी सुम्मत साहू ने बताया कि –
“जाँच में जो भी तथ्य सामने आएँगे, उनके आधार पर आरोपियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। पत्रकारिता की आड़ में कोई कानून तोड़ेगा, तो उसे बख्शा नहीं जाएगा।”
वहीं, पुलिस सूत्रों के अनुसार, आरोपियों की गिरफ्तारी जल्द हो सकती है, और उनकी कॉल डिटेल, सोशल मीडिया चैट्स और वीडियो सामग्री की भी जांच की जा रही है।
निष्कर्ष: पत्रकारिता की पवित्रता पर एक और हमला
जहां सच्चे पत्रकार समाज के लिए एक प्रहरी की भूमिका निभाते हैं, वहीं कुछ लोग ‘माइक-मोबाइल-प्रेस कार्ड’ के नाम पर अपराधी मानसिकता के साथ लोगों को ब्लैकमेल कर रहे हैं। यह मामला इस बात का ताज़ा उदाहरण है कि फर्जी पत्रकारिता किस कदर सामाजिक भरोसे को तोड़ रही है।
अब ज़रूरत है —
✅ दोषियों को सख्त सज़ा देने की
✅ पत्रकारों का सत्यापन और रजिस्ट्रेशन अनिवार्य करने की
✅ और समाज को ऐसे भेष में छुपे अपराधियों से सावधान करने की।