पंचायतों में फर्जीवाड़ा और जांच में घोर लापरवाही: क्या सीईओ भी आंखों पर काली पट्टी बांधे बैठे हैं?
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बरमकेला जनपद पंचायत में लगातार फर्जीवाड़े और धांधली के मामले सामने आ रहे हैं। सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि जिन मामलों की जांच के लिए टीम बनाई जाती है, वही जांच दल आंख मूंदकर बैठा रहता है। यह केवल भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने जैसा है। हाल ही में लुकापारा और सहजपाली पंचायतों में सामने आए फर्जी सील प्रकरण ने प्रशासनिक प्रणाली की साख पर ही सवाल खड़ा कर दिया है।
लुकापारा पंचायत का फर्जीवाड़ा
ग्राम पंचायत लुकापारा में जांच प्रतिवेदन से बड़ा खेल सामने आया। वहां के सरपंच और सचिव के नाम पर लगाए गए दस्तावेज़ों में फर्जी सील का इस्तेमाल किया गया। जब शिकायत हुई तो जनपद पंचायत बरमकेला के मुख्य कार्यपालन अधिकारी (सीईओ) ने जांच टीम गठित की। लेकिन आश्चर्य की बात यह रही कि जांच दल ने उस सील को देखने की भी ज़हमत नहीं उठाई। जिस सील के आधार पर पूरा मामला फर्जी साबित हो सकता था, वही तथ्य जांच टीम की नज़र से “गायब” कर दिया गया।
यहां बड़ा सवाल यह है कि क्या जांच टीम जानबूझकर लापरवाह बनी रही? क्या यह केवल एक “गलती” है या फिर किसी को बचाने की साज़िश? जब एक साधारण ग्रामीण भी फर्जी सील को पहचान सकता है, तो अनुभवी अधिकारी और कर्मचारी कैसे इसे नज़रअंदाज़ कर सकते हैं? इससे साफ झलकता है कि कहीं न कहीं जांच महज़ औपचारिकता बनकर रह गई है।
सीईओ की भूमिका पर उठते सवाल
जब लुकापारा की रिपोर्ट सीईओ के पास पहुंची तो उनसे उम्मीद थी कि वह इसकी बारीकी से जांच करवाएंगे और दोषियों पर कार्रवाई करेंगे। लेकिन ऐसा कुछ होता दिखाई नहीं दे रहा। उल्टे सीईओ पर ही सवाल उठने लगे हैं कि क्या वह भी आंखों पर काली पट्टी बांधे बैठे हैं? या फिर पूरे मामले को दबाने का प्रयास हो रहा है?
जनता अब सवाल पूछ रही है कि आखिर यह कैसी जांच है, जिसमें फर्जी सील भी नज़र नहीं आती? क्या मुख्य कार्यपालन अधिकारी भी उसी धांधली की परत में कहीं न कहीं शामिल हैं? अगर ऐसा नहीं है, तो फिर निष्पक्ष और कठोर कार्रवाई क्यों नहीं हो रही?
सहजपाली पंचायत का ताज़ा मामला
लुकापारा की गड़बड़ी पर धूल भी नहीं जमी थी कि सहजपाली पंचायत से भी फर्जीवाड़े की गूंज उठने लगी। यहां भी सचिव द्वारा फर्जी सील के इस्तेमाल का मामला उजागर हुआ है। इस मामले की जांच वर्तमान में अनुविभागीय अधिकारी (SDM) के कार्यालय में चल रही है। अगर यहां भी वही ढर्रा अपनाया गया जो लुकापारा में हुआ था, तो सहजपाली की रिपोर्ट भी महज़ कागज़ी कार्रवाई बनकर रह जाएगी।
सवाल यह है कि आखिर पंचायत सचिव और सरपंच बार-बार फर्जी सील का इस्तेमाल करने की हिम्मत कैसे जुटा लेते हैं? इसका सीधा जवाब यही है कि उन्हें ऊपर तक से संरक्षण मिलता है। अगर हर फर्जीवाड़े पर कठोर कार्रवाई होती तो आज पंचायत सचिव खुलेआम नियमों की धज्जियां उड़ाने की हिम्मत न करते।
भ्रष्टाचार का गठजोड़
लुकापारा और सहजपाली दोनों ही मामले सिर्फ “सील फर्जीवाड़ा” तक सीमित नहीं हैं। यह दरअसल उस भ्रष्ट गठजोड़ का हिस्सा है, जिसमें ग्राम पंचायत से लेकर जनपद पंचायत तक के अधिकारी शामिल होते हैं। अगर गांव में किए गए कामों की फाइलें खोलकर देखी जाएं तो हर जगह कागज़ पर योजनाएं पूरी दिखेंगी, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और होगी।
योजना का पैसा निकल चुका होगा, लेकिन काम अधूरा या अस्तित्वहीन मिलेगा। यही कारण है कि जब जांच की बात आती है, तो जांच टीमों का रवैया लचर और औपचारिक होता है। ताकि किसी का नाम खराब न हो और भ्रष्टाचार का खेल चलता रहे।
ठोस कार्रवाई की ज़रूरत
अब वक्त आ गया है कि इन मामलों पर कठोर और उदाहरण पेश करने वाली कार्रवाई हो। सिर्फ जांच बैठाने और रिपोर्ट लेने से कुछ नहीं होगा।
सबसे पहले लुकापारा और सहजपाली दोनों पंचायतों में फर्जी सील प्रकरण पर जिम्मेदार सरपंच और सचिव के खिलाफ आपराधिक प्रकरण दर्ज होना चाहिए।
दूसरी बात, जांच टीमों की भी जवाबदेही तय की जानी चाहिए। अगर उन्होंने जानबूझकर फर्जी सील को नजरअंदाज किया है, तो यह सीधी-सीधी भ्रष्टाचार में संलिप्तता है।
तीसरी बात, मुख्य कार्यपालन अधिकारी को भी कठघरे में खड़ा किया जाना चाहिए कि आखिर उनके स्तर पर कार्रवाई क्यों नहीं हुई।
निष्कर्ष
बरमकेला जनपद पंचायत के लिए यह मामले “लाल झंडी” हैं। अगर अब भी कड़ी कार्रवाई नहीं हुई तो यह संदेश जाएगा कि भ्रष्टाचार को प्रशासनिक स्तर पर भी संरक्षण प्राप्त है। लुकापारा और सहजपाली का मामला सिर्फ दो पंचायतों का नहीं, बल्कि पूरे तंत्र की पोल खोलता है। जनता अब जागरूक है और प्रशासन को यह समझना होगा कि आंखों पर काली पट्टी बांधकर बैठने से जिम्मेदारी से बचा नहीं जा सकता।