लुकापारा पंचायत प्रकरण: जांच टीम का गोलम सरपंच-सचिव पर संदेह और गहराया
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बरमकेला ब्लॉक के ग्राम पंचायत लुकापारा में सरपंच देवानंद सामल और सचिव रंजीत सिदार के झूठी बयानों ने पूरे मामले को संदेह के घेरे में ला दिया है। जनपद पंचायत की जांच टीम से जब इस विषय पर बात की गई, तो उनका गोलमोल जवाब न केवल हैरानी पैदा करता है, बल्कि इन बयानों पर शक को और गहरा करता है ग्राम पंचायत लुकापारा की जब लिखित शिकायत धारा 40 (ग) के माध्यम से किया गया तब मामला सामने आया की सरपंच एवं सचिव द्वारा जो बयान दिया दिया गया है पूरी तरह से झूठ है सोचा था जांच टीम मौके पर जा कर पारदर्शी और स्पष्ट जांच करेगी पर हुई जांच से घटनाक्रम कुछ और ही संकेत दे रहा है।
जांच टीम का गोलमोल उत्तर
जनपद पंचायत के जांच सदस्य श्री पुरन कुमार नेताम से जब इस बारे में दूरभाष के माध्यम से संपर्क किया गया, तो उनका उत्तर हैरान करने वाला था। उन्होंने कहा—
“हमारे पास जो फोटो कॉपी आए थे, उसी फोटो कॉपी को सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 के तहत सत्य प्रतिलिपि के रूप में अजय कुमार साहू को दे दिया गया।”यह कहते हुए उन्होंने अपने ऊपर से जिम्मेदारी हटाने की कोशिश की और आगे की जानकारी के लिए कर्रारोपण अधिकारी श्री मधुसुधान सड़ंगी से बात करने का सुझाव दिया।
नेताम जी का यह बयान, ये स्पष्ट करता है, कि
उन्होंने साफतौर से अपना पल्ला झाड़ा है उनका ऐसा पल्ला झाड़ना अपने आप में कई सवाल खड़े करता है सबसे बड़ी बात तो ये है की श्री नेताम स्वयं जांच टीम के सदस्य है और उनका इस प्रकार का कथन स्पष्ट करता है की जांच टीम मौके पर गई ही नहीं है
क्या जांच टीम ने केवल फोटो कॉपी के आधार पर अपना काम पूरा मान लिया?
क्या मौलिक दस्तावेज की जांच करने की जरूरत महसूस नहीं हुई?
क्या यह जांच औपचारिकता भर थी?
कर्रारोपण अधिकारी की प्रतिक्रिया
जब कर्रारोपण अधिकारी श्री मधुसुधान सड़ंगी से दूरभाष के माध्यम से संपर्क किया गया, तो उन्होंने बताया कि उनकी तबीयत अस्वस्थ है, और वे इस विषय पर विस्तार से बात करने की स्थिति में नहीं हैं। यह स्थिति भी संदेह को और गहरा करती है, क्योंकि जांच प्रक्रिया में शामिल एक अहम अधिकारी की अनुपलब्धता, पारदर्शिता पर प्रश्नचिन्ह खड़े करती है।
मामले में बढ़ता संदेह
पूरे घटनाक्रम को देखने पर स्पष्ट होता है कि जांच में गंभीरता की कमी दिखाई देती है। सरपंच और सचिव के बयान झूठी है, अब जांच टीम का गोलमोल जवाब
सूचना के अधिकार का सवाल
इस मामले में एक अहम बिंदु यह भी है कि सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 के तहत जब जानकारी मांगी गई, तो आवेदक को वही फोटो कॉपी दी गई जो जांच टीम के पास पहले से मौजूद थी। सवाल यह है कि—
क्या जांच टीम ने स्वयं दस्तावेजों की प्रमाणिकता की जांच की?
या बिना जांच किए केवल उपलब्ध फोटो कॉपी को ‘सत्य प्रतिलिपि’ का दर्जा दे दिया?
क्या यह अधिनियम की मूल भावना के विपरीत नहीं है?
कुछ लोगों ने तंज कसते हुए कहा—
“यह जांच तो ऐसे हुई जैसे किसी बीमार व्यक्ति को देखकर बिना नाड़ी देखे ही कह दिया जाए कि वह स्वस्थ है।”
मामले का संभावित असर
अगर यह मामला सही तरीके से नहीं सुलझा, तो इससे न केवल पंचायत की साख प्रभावित होगी, बल्कि भविष्य में ऐसे मामलों में शिकायतकर्ताओं का भरोसा भी टूट जाएगा। पंचायत स्तर की पारदर्शिता और जवाबदेही लोकतांत्रिक व्यवस्था की नींव है। यदि जांच में ही अस्पष्टता रहेगी, तो यह व्यवस्था के लिए खतरे की घंटी है।
निष्कर्ष
ग्राम पंचायत लुकापारा का यह मामला केवल एक प्रशासनिक विवाद नहीं, बल्कि स्थानीय शासन की जवाबदेही और पारदर्शिता की एक अहम परीक्षा है। सरपंच और सचिव के विवादित बयान, जांच टीम का गोलमोल रवैया और कर्रारोपण अधिकारी की अनुपलब्धता—इन सबने मिलकर इस प्रकरण को और जटिल बना दिया है।
अब देखना होगा कि उच्च प्रशासन इस मामले को कितनी गंभीरता से लेता है और क्या वास्तव में एक निष्पक्ष, पारदर्शी जांच संभव हो पाती है या नहीं।